Thursday 30 May 2013

आगे के सफ़र की तैयारी की प्रक्रिया...

एक खास सुझाव कि तुम न तो पूर थिंकर हो और न पूरी तरह से डूअर हो । इसलिए लिखने और काम करने दोनों के बीच समन्वय वाला काम काफी बेहतर होगा। तुम वही लिखते हो जो तुम्हारा अनुभव होता है। लर्निंग प्वाइंट आफ व्यु से काम करने का विकल्प काफी बेहतर होगा। 

इसके लिए लोगों से संवाद करना, पढ़ना, लिखना और क्षेत्र की सच्चाइय़ों को जानने की कोशिश करना काफी बेहतर होगा। यह सुझाव काफी पसंद आया मुझे। ढेर सारी रीडिंग करनी है। फ्रीलांसिंग का काम करना है। इस तरह से आगे की तैयारी करना है। पूरी बातचीत 20-3 या 3-20 नहीं है। सत्र को सहभागितापूर्ण बनाने की कोशिश करेंगे।

आर्ट आफ डूइंग रिसर्च सीखना बहुत जरूरी है। इससे हम शोध को मेथडॉलजी के साथ करना सीख सकेंगे। प्लेसमेंट टीम नें कहा कि अभी तो मैं जवान हूं। पास्ट डेटा क्या है, दो साल एजूकेशन में काम किया, उनका काम इक्सपीरियंस बेस्ड है, अनुभव के कारण लोगों का झुकाव शिक्षा के क्षेत्र की तरफ होता है। यूथ को सपोर्ट करने के लिए उनको समझना बहुत जरूरी है। एजूकेशन में ढेर सारे सिग्मेंट हैं और सारे सिग्मेंट्स में ढेर सारे काम हो रहे हैं। बहुत सारे डोमेन निकलकर आ रहे हैं। एक डोमेन में कितने सिग्मेंट हैं, उसमें क्या काम हो रहा है, लोग किस क्षेत्र में जा रहे हैं।

अनुभव – जब हम किसी को डोमेन बाहर का आदमी, स्टूडेंट या एनजीओ – बिकमिंग एट एक्सपर्ट या फ्युचर एक्सपर्ट ( इसके लिए बेसिक जानकारी तो होनी ही चाहिए। ब्राड अंडरस्टैंडिंग आफ डोमेन एण्ड अंडरस्टैण्डिंग योर ओन डोमेन। पहली डोमेन एजूकेशन से हम शुरुआत करते हैं। पीपुल वान्ट टू सी अस एज फ्युचर एक्सपर्ट। लोगों के साथ हमने बातचीत की जिससे यह निकलकर आया कि बाहर जितने भी लोग हैं। जब हम अपने बारे में बताते हैं तो उनका हमारे प्रति रिस्पेक्ट बढ़ जाता है। पहली बात कि हमनें जमीनी स्तर पर काम किया है। जिस डोमेन में हम काम करते हैं – किसी से बात करते समय आप स्टैण्ड अप क्यों होते हैं, आपने जमीन पर काम किया है। आपको अपने क्षेत्र की समझ हैं। आप समस्या को क्रिटिकल एनालाइज करते हैं। उसके साथ-साथ साल्युशन भी खोजते हैं।

सबसे पहले हम हाइपोथिसिस से शुरुआत करते हैं, जिस शाल्युशन के बारे में हम सोच रहे हैं, उस पर पहले से कोई काम कर रहा है। रिसर्च कैन वी वास्ट, कितना सारा नालेज हैं, उसको नैरो करना पड़ेगा।

प्राब्लम स्टेटमेंट – हाइपोथिसिस पकड़ा – कंटेंट के साथ का प्रासेस पॉलिसी, प्लानिंग कमीशन की रिपोर्ट, उसमें ढेर सारे साल्युशन दिए गए हैं। इसके पहले लगता था कि सरकार समाधान के तरीके नहीं सुझाती है। मेलान्युट्रिश – 0 से 90। मिलेनियम डेबलेपमेंट गोल पर बहुत बुरी हालत है। हमारे टैक्स में से 1 प्रतिशत खर्चा होता है। हमारे देश में निजी क्लीनिक खोलने के लिए समान नियम नहीं है। हर राज्य का अपना नियम है। फ्री चेक अप का प्रावधान है, लेकिन नहीं होता। साउथ व वेस्ट महाराष्ट्र में कंस्नट्रेशन ज्यादा है। मेडिकल काउंसिल की रिपोर्ट। लॉ में यूनिफार्मिटी का घोर अभाव है। हमारे यहां मेडिशिन तुरंत देते हैं। मेथड का पता नहीं चलता। हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स पर कोई लीगल कंपलश्न नहीं है। 

मेडिशिन कंपनीज के नाम पर काफी करपश्न होता है। जेनरिक नाम से मेडिशिन नहीं दी जाती है। मेडिशिन टेस्टिंग का कारोबार चलता है। पांच या दस डॉक्टर्स की सिफारिश पर एक दवा बाजार में चल सकती है। दस एप्रूबल हैं, दसों में एक बात है, लेटर हेड अलग है। लेकिन ग्रामेटिकल मिस्टेक्स भी समान थी। मेंटल हेल्थ एक अलग डोमेन हैं, उसके लिए 1 प्रतिशत भी संवेदनशीलता नहीं है। हम आजादी से आज तक महामारियों से नहीं बच पाए हैं। पहली हेल्थ पॉलिसी – 1983 में हुई थी। लाइफ स्टाइल डिजेज बढ़ रही हैं। 85 प्रतिशत कमेटियों के सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया है। यहां तक कि पहली समिति के सुझाव भी लागू नहीं किए गए हैं। एनआरएचएम – एनयूएचएम के ऊपर बात हुई। आठ लाख आशाएं हैं। जननी सुरक्षा योजना। इंडियन मेडिकल सिस्टम। राइट टू हेल्थ बिल – जो एक पॉजिटिव साइट है।

प्रासेस क्या था –
डेटा – निगेटिव वाला डेटा –जहां से प्राब्लम स्टेटमेंट निकलकर आया है।
डोमेन सर्वे और रिसर्च – ब्राड नॉलेज, प्राब्लम स्टेट मेंट, डेटा कलेक्शन – डेटा एनालिसिस – डेटा क्रिटिसिज्म
ह्वाट आई निडेड  रीड – डेटा के लिए दो चीजें देखनी होती हैं
रिलाइबल सोर्सेज -
सरकार के मंत्रालय की बेबसाइट देखनी पड़ती है
उसके ऊपर यूनिर्वसल लेबल पर नोन संस्थाओं की बेबसाइट देखना
एक्युमुलेटेड और एनालाइज डेटा से जानकारी मिलती है
सर्च के लिए कौन सा की वर्डस इस्तेमाल करना पड़ता है
नेशनल फेमिली और हेल्थ के तीन सर्वें हुए हैं – मास्टर डाक्युमेंटे
रिसर्च और सर्वे के पेपर पढ़ना काफी हेल्प करता है।
सरकार का व्यु – बाहर का व्यु समझना ( सरकार की रिपोर्टस और बाकी संस्थाएं)
पेपर पर पालिसी काफी अच्छी लगती है। जो डेटा बेबसाइट पर दिखाया गया है। वे काफी अच्छे हैं। जो अच्छा पहलू है, सरकार की साइट पर प्रस्तुत किया जाता है। निगेटिव्स को रिपोर्टस में थोड़ी-थोड़ी जगह दी जाती है। उस फील्ड के सारे इश्यूज प्रस्तुत करना।

सार्क देशों के यूथ की समस्याओं को सुनने और रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत करने का मौका मिला। वाकई में उनको प्लेटफार्म नहीं मिलता है। इंडिया में 13 से 35 साल तक यूथ रहेंगे। 87 प्रतिशत यूथ डेपलपिंग कंट्रीज में रहते हैं। 70 प्रतिशत यूथ भारत में हैं। उनके लिए कुछ है ही नहीं। बच्चों के लिए काफी सारे रूल, रेगुलेशन हैं। पैंतीस से अदिक ओल्ड एज के लिए भी काफी सारी पॉलिसीज हैं। जवान लोगों को कोई बेनिफिट नहीं मिलता है। केवल बेरोजगारी भत्ते के....क्या भारत के युवा देश के लिए प्राफिट है। क्या भारत विश्व में सबसे प्राफिटेबल कंट्री है।
बच्चों की क्षमता पर भरोसा करना चाहिए – शिक्षक की जिम्मेदारी होती है।
गाना गाइए अभी तो मैं जवान हूं –
योगा के थ्रू लोगों को निरोगा करेंगे 

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