Thursday 30 May 2013

भयमुक्त वातावरण किस चिड़िया का नाम है ?

छोटे बच्चों को दाना चुगाती मुर्गी
आज सुबह स्कूल की तरफ जाते हुए देखा कि जीप पर कॉलेज जाने के लिए चढ़े बच्चे नीचे उतर रहे हैं। माजरा कुछ समझ में नहीं आया। सारे बच्चे विभिन्न भाव मुद्रा में खड़े किसी और जीप के आने की राह देख रहे थे। 

लेकिन काफी देर तक कोई जीप न आई। मुझे भी स्कूल के लिए गांव की तरफ जाना था। बच्चे कॉलेज जाने के लिए हाइवे तक का सफर तय करके मुख्य सड़क एनएच-8 तक आए थे। कुछ ने तो धैर्य और अधीरता के मिले-जुले भावों के साथ इंतजार किया। 

बाकियों को लेट होने का डर था, इसलिए वे वापस घरों की ओर लौट चले। मानो खबर मिल गई हो कि आज स्कूल बंद है। मैं जिस गांव की तरफ जाता हूं, वहीं के पास के एक शिक्षक जो स्कूल की तरफ जा रहे थे, मुझे भी अपनी स्कूटी पर बैठाकर स्कूल वाले रास्ते पर एक किलोमीटर पहले छोड़ दिया। घर से निकलते समय दो किलोमीटर के सफर के लिए मन तैयार रहता है। क्योंकि जिस मोड़ पर स्कूल के लिए सड़क जाती है, वहां से कोई वाहन नहीं चलता। सिर्फ दुपहिए चलते हैं। किसी रोज जीप या किसी ऑटो का मिल जाना महज संयोग की बात कही जा सकती है।एक किलोमीटर का फासला कुछ गुनते-बुनते और सोचते-विचारते कट गया।

स्कूल के पास वाले रास्ते पर स्कूल के दो बच्चे बकरियों के साथ जाते हुए दिखे। मैनें उनसे पूछा कि स्कूल बंद है क्या ? उन्होनें आत्मविश्वास से जवाब दिया नहीं। फिर मैनें पूछा कि बकरियों का कोई मेला लगा है क्या ? जो बकरियों को सजा-धजाकर वहां घुमाने के लिए ले जा रहे हो ? उन्होनें जिम्मेदारी के साथ बोला कि हम इनको चराने के लिए ले जा रहे हैं। उनका जवाब सुनकर अपने बचपन के दिन याद आ रहे थे।

जब हम भी जानवरों को चराने के लिेए ले जाते थे। लेकिन वे गर्मियों की छुट्टियों के दिन हुआ करते थे। बाकी दिनों में खेतों में फसल लगी होने के नाते और चरागाह के अभाव के कारण उनको घर के पास ही किसी बड़ी रस्सी से बांधकर चरने के लिए छोड़ दिया जाता था। मेरे घर के पास में एक बड़ा तालाब है, उसमें जानवरों को हांककर छोड़ने की बात याद आती है। जहां से वे जमकर खाने के बाद वापस लौट आते थे। बचपन में जब तेज हवाएं चलती थीं और जलकुम्भीयां एक छोर से बहकर दूसरे छोर पर चली जातीं तो बीच का भाग साफ हो जाता था। 

ऐसे में हम जलकुम्भी की नाव बनाते। लाठी के सहारे उसे खेते हुए पूरे तालाब की सैर लगाते। घर वालों को भनक लगती तो काफी खिंचाई भी होती थी। लेकिन उस समय की शरारतों की बात ही कुछ और थी। एक छोटा सा दृश्य अतीत की ओर खींच ले गया। तो बात हो रही थी, बकरी चराने के लिए ले जाने वाले बच्चों की। वे बच्चे बकरी के छोटे बच्चों को गोद में उठाए हुए बकरियों के पीछे-पीछे चल रहे थे। उनको देखकर लग रहा था कि वे जिंदगी के कितने करीब हैं। स्कूल में इन सारे अनुभवों की कभी-कभार ही कोई बात हो पाती है। किताबों का जीवन से कोई सीधा रिश्ता नहीं दिखता। वे बच्चे मुझ अपना होम वर्क करते नजर आए। 

स्कूल में मैनें एक अलग दृश्य देखा। जो लड़के दीपावली को होम वर्क करके नहीं आए थे, उनको मुर्गा बनाया गया था। लड़कियां हाथ ऊपर करके खड़ी थीं। मुझे हैरानी हो रही थी कि ऐसा क्युं हो रहा है। मैं कमरे में पूछने के लिए चला गया कि अरे गुरू जी क्या हो गया, जो बच्चों के ऊपर इतना गुस्सा कर रहे हैं ? तो उन्होनें बच्चों को कापी लाने और काम पूरा करके आने की हिदायत के साथ वापस बैठा दिया। वे भी वहीं के पास के गांव से आते हैं। बच्चे किन परिस्थितियों में रहते हैं, कैसे स्कूल आते हैं, होली के दौरान पीने-पिलाने और हो-हल्ले का कैसा माहोल होता है...इन सारी बातों से वे वाकिफ हैं। लेकिन संवेदनशीलता का जो एहसास जो बच्चों को उनकी तरफ से मिलना चाहिए, कहीं गुम होता सा दिख रहा था। अगर वे होम वर्क पूरा नहीं करके आए थे तो क्या हो गया ? उनको अपना काम पूरा करने के लिए कुछ और वक़्त दिया जा सकता था। 

स्कूल से घर लौटते बच्चे, बकरी चराने का होम वर्क करते बच्चे, होम वर्क न पूरा करने के लिए मुर्गा बनते और हाथ ऊपर करके खड़े बच्चे सवाल पूछ रहे थे कि मेरे घर से स्कूल इतना दूर क्यों है, स्कूल जाने के लिए कोई साधन क्यों नहीं है, क्यों हमें जीप की छत पर बैठकर या किनारे लटककर स्कूल जाना पड़ता है, अगर कोई दुर्घटना हो जाय तो क्या होगा, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?  बकरी चराने के लिए जाते बच्चे पूछ रहे थे कि स्कूल जाने के समय में घर के काम में क्यों लगे हैं, स्कूल जाने के लिए घर के लोग क्यों नही कहते, स्कूल जाने से अगर बकरी भूखी रहती है, तो घर पर ही रहना बैहतर है, स्कूल से वापस आने के बाद बाकी साथी मुझे बताएंगे क्या कि आज स्कूल में क्या-क्या हुआ


स्कूल में मुर्गा बनने वाले बच्चे पूछ रहे हैं कि हमें कब लोग समझेंगे, शायद बड़ों को छोटे बच्चों को डांटने-मारने का अधिकार मिला हुआ है। बच्चों से अगर भयमुक्त वातावरण की बात हो तो वे यह भी पूछ सकते हैं कि भयमुक्त वातावरण किस चिड़िया का नाम होता है

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