Saturday 29 June 2013

और बताओ की बात.......

....................और बताओ, और क्या हाल है, और क्या चल रहा है, कोई नई ख़बर नही. दुनिया में जितना कुछ भी बड़ा और रचनात्मक हुआ है. उसे कुछ हटकर करने वालों ने किया है. दिमाग विकसित करने से क्या होगा, दिमाग विकसित करने के लिए मन को तरह-तरह के अनुभवों, घटनाओं, लोगों और किताबों से मिलते रहना चाहिए. विचारों की सरिता में बहते-बहते मन में फेलोशिप की डिजाइन के बारे में सोच रहा था. लोगों से बात करते समय तरह-तरह की बातें मन में कौंधती है. लोग सोचते हैं कि यह बताऊं कि नहीं. वह बताऊं कि नहीं. लेकिन अनकांसियसली होने वाली बातों का अपना आनंद होता है.

घर पर रहते हुए फेलोशिप के अनुभवों को कैसे लागू किया जा सकता है. लगता है कि फेलोशिप भी दायरा बनने लगी है. लेकिन बाहरी दुनिया के अनुभवों के साथ मिलकर पुराने अनुभवों को परिपक्व होने का मौका मिल रहा है. जो पढ़-लिखे नहीं है. जो भाषा के जादुई संसार से दृश्य और श्रव्य माध्यमों से परिचित है. लेकिन लिखने और पढ़ने की सुख-तकलीफ से अपरिचित हैं. अब तो वर्चुअल दुनिया भी लोगों के मनोरंजन का साधन बन गई है. लोग फोन पर मैसेज देखकर मुस्कुराते हैं, फेसबुक स्टेट्स देखकर हंसते हैं तो लगता है कि लिखने में असर तो है.

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